धारा 1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ-
1. संपूर्ण भारत पर है
2. सिवाय अध्याय 8 , 10 और 11 से संबंधित उपबंधों से भिन्न उपबंध-
(a) नागालैण्ड राज्य
(b) जनजाति क्षेत्रों को लागू नहीं होंगे किन्तु राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा लागू कर सकती है।
महत्वपूर्ण परिभाषाएं
धारा 2.
(a) जमानतीय एवं अजमानतीय अपराध (b) आरोप
(c) संज्ञेय अपराध
(d) परिवाद
(e) उच्च न्यायालय
(f) भारत
(g) जांच
(h) अन्वेषण
(i) न्यायिक कार्यवाही
(j) स्थानीय अधिकारिता
(k) महानगर क्षेत्र
(L) असंज्ञेय अपराध
(m) अधिसूचना
(n) अपराध
(o) पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी
(p) स्थान
(q) प्लीडर
(r) पुलिस रिपोर्ट
(s) पुलिस थाना
(t) विहित
(u) लोक अभियोजक
(v) उपखण्ड
(w) समन-मामला
(wa) आहत
(x) वारण्ट मामला
(y) वे शब्द जो IPC में परिभाषित है
2(A)जमानतीय अपराध:- 1 ( a) प्रथम अनुसूची (b) तत्समय प्रवृत्त या अन्य विधि द्वारा जमानीय
- अजमानतीय अपराध:- अन्य कोई अपराध
2 (b) आरोप- जब आरोप में एक से अधिक शीर्ष हो तब आरोप का कोई भी शीर्ष R/W CH-17 (धारा 211-217).
2.(C) संज्ञेय अपराध:- ऐसा मामला जिसमें पुलिस अधिकारी वारण्ट के बिना गिरफ्तार कर सकता है
2.(L) असंज्ञेय अपराध:- ऐसा मामला जिसमें पुलिस अधिकारी वारण्ट के बिना गिरफ्तार नहीं कर सकता
a) प्रथम अनुसूची के
(b) तत्समय प्रवृत्त विधि
( c) किसी अन्य विधि के अनुसार
परिवाद 2(d) – मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही की जाने की दृष्टि से मौखिक या लिखित कथन कि ज्ञात या अज्ञात व्यक्ति ने कोई अपराध किया
* इसके अंतर्गत पुलिस नहीं आती
उच्च न्यायालय 2 (e)
भारत 2 (f)
स्पष्टीकरण 2d – ऐसे मामले में जो अन्वेषण के पश्चात् किसी असंज्ञेय का किया जाना प्रकट करता है पुलिस अधिकारी द्वारा की गई रिपोर्ट परिवाद समझी एवं पुलिस अधिकारी परिवादी रामझा जाएगा।
2(g) जांच
2 (h) अन्वेषण– विचारण से भिन्न ऐसी प्रत्येक जांच जो मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा की जाए।
पुलिस अधिकारी या न्यायालय द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा की गई वे सब कार्यवाहियों जिनका उद्देश्य साक्ष्य एकत्र करना रहा हो।
मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा की गई कार्यवाही जिसका उद्देश्य दोषसिद्धि या दोषमुक्ति रहेगा।
न्यायिक कार्यवाही 2 (i) साक्ष्य वैध रूप से शपथ पर लिए जाते हैं।
अपराध 2 (n)– कार्य या लोप अभिप्रेत है जो-
(a) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा दण्डनीय बना दिया गया है।
(b) ऐसा कार्य भी है जिसके बारे में पशु अतिचार अधि. 1971 की धारा 20 के अधीन परिवाद किया जा सकता है।
पुलिस थाने का भारसाधक अधिकार 2 (0) –
कान्स्टेबल की पंक्ति से ऊपर है या जब राज्य सरकार ऐसा निर्देश दे तब इस प्रकार उपस्थित कोई अन्य पुलिस अधिकारी भी है।
स्थान 2(P) – गृह, भवन, तंबू, यान और जलयान
पुलिस रिपोर्ट 2 (r) – पुलिस अधिकारी द्वारा धारा 173 (2) के अधीन मजिस्ट्रेट को भेजी गई रिपोर्ट !
समन मामला 2 (w)
जो किसी अपराध से संबंधित है और जो वारण्ट मामला नहीं है।
वारण्ट मामला 2 (x)
जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की मामला नहीं है। अवधि के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध से संबंधित है।
धारा 4 भारतीय दण्ड संहिता और अन्य विधियों के अधीन अपराधों का विचारण–
(a) IPC के सब अपराधों का अन्वेषण जांच, विचारण और उनके संबंध में अन्य कार्यवाही दण्ड प्रक्रिया संहिता के अनुसार की जाएगी।
(b) अन्य विधि के अधीन सब अपराधों का अन्वेषण जांच, विचारण और उनके संबंध में अन्य कार्यवाही निबंधों के अधीन दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार की जाएगी।
धारा 5 व्यावृत्ति – निम्न पर दंड संहिता
लागू नहीं होगी-
(a) किसी विशेष विधि (IPC की धारा 41)
(b) किसी स्थानीय विधि (IPC की धारा42)
(c) तत्समय प्रवृत्त या किसी अन्य विधि द्वारा विहित
(d) विशेष प्रक्रिया
“दंड न्यायालयों और कार्यालयों का गठन(6-25A) :-
1. दंड न्यायालयों का वर्ग (धारा-6)
2. सेशन न्यायालय (धारा-9)
3. सहायक सेशन न्यायाधीश (धारा-10)
4.न्यायिक मजिस्ट्रेट (धारा 11-15)
5. महानगर मजिस्ट्रेट (धारा 16-19)
6. कार्यपालक मजिस्ट्रेट (धारा 20-23)
धारा 6. दंड न्यायालयों के वर्ग–
(i) सेशन न्यायालय
(ii) प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट और किसी महानगर क्षेत्र में महानगर मजिस्ट्रेट
( iii) द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट
(iv ) कार्यपालक मजिस्ट्रेट
धारा 8. महानगर क्षेत्र:- 1.ऐसा क्षेत्र जिसको राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा घोषित किया गया एवं जिसकी जनसंख्या 10 लाख से अधिक है।2. मुंबई, कलकत्ता और मद्रास प्रेसिडेन्सी नगर
धारा 9 सेशन न्यायालय :-
1. राज्य सरकार प्रत्येक सेशन खण्ड के लिए एक सेशन न्यायालय स्थापित करेगी।
2 पीठासीन अधिकारी उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किया जायेगा।
3. उच्च न्यायालय अपर सेशन न्यायाधीशों और सहायक सेशन न्यायाधीशों को सेशन न्यायाधीश की अधिकारिता का प्रयोग करने के लिए नियुक्त कर सकता है।
4. एक सेशन खण्ड के सेशन न्यायाधीश को दूसरे खण्ड का अपर सेशन न्यायाधीश भी नियुक्त किया जा सकता है।
5. सेशन न्यायाधीश का पद रिक्त होने पर उच्च न्यायालय ऐसे अर्जेन्ट आवेदन जो उस सेशन न्यायालय के समक्ष किया जाता है या लंबित है वहाँ सेशन खण्ड के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा निपटाने की व्यवस्था कर सकता है।
6 . सेशन न्यायालय सामान्यतः अपनी बैठक ऐसे स्थान या स्थानों पर करेगा जो उच्च न्यायालय अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे किन्तु (a) पक्षकारों और साक्षियों की सुविधा होगी। कष् (b) अभियोजन और अभियुक्त की सहमति अन्य स्थान पर कर सकता है।।
धारा 10. सहायक सेशन न्यायाधीशों का अधीनस्थ होना :-
1. सब सहायक सेशन न्यायाधीश उस सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होंगे जिसके न्यायालय में वे अधिकारिता का प्रयोग करते हैं।
2. सेशन न्यायाधीश समय-समय पर बना सकता है।
3. सेशन न्यायाधीश अपनी अनुपस्थिति में या कार्य करने में असमर्थता की स्थिति में किसी अर्जेन्ट आवेदन के अपर या सहायक सेशन न्यायाधीश मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा निपटाए जाने के लिए भी व्यवस्था कर सकता है।
धारा 11. न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायिक मजिस्ट्रेटों के न्यायालय :-
1. प्रथम वर्ग और द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेटों के इतने न्यायालय स्थापित करेगी जो राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात् अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करें, जहाँ विशेष न्यायालय वहाँ नहीं करेगी ।
2. पीठासीन उच्च न्यायालय द्वारानियुक्त किए जाएंगे।
3. उच्च न्यायालय सिविल न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्यरत राज्य की न्यायिक सेवा के किसी सदस्य को शक्तियां प्रदान कर सकता है।
धारा 12.मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट आदि :-
उच्च न्यायालय प्रत्येक जिले में एक प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगा
धारा 13.न्यायिक मजिस्ट्रेट:-
1. केन्द्रीय या राज्य सरकार उच्च न्यायालय से ऐसा करने के अनुरोध पर उच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को जो सरकार के अधीन कोई पद धारण करता है या जिसने पद धारण किया है किसी जिले में विशेष या विशेष वर्ग के मामलों के संबंध में प्रथम वर्ग एवं द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है। परन्तु ऐसी शक्ति ऐसे व्यक्ति को प्रदान नहीं की जायेगी जिसके पास विधिक अर्हता या अनुभव न हो।
2. एक समय में एक वर्ष के लिए |
3. स्थानीय अधिकारिता के बाहर के किसी महानगर शक्तियों के लिए सशक्त कर सकता है।
धारा 14. न्यायिक मजिस्ट्रेटों की स्थानीय अधिकारिता :-
उच्च न्यायालय के नियंत्रण के अधीन रहते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट समय-समय पर उन क्षेत्रों की स्थानीय सीमाएँ परिनिश्चत कर सकता है।
धारा 15.न्यायिक मजिस्ट्रेटों का अधीनस्थ होना
प्रत्येक मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के अधीन होगा एवं अन्य प्रत्येक मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के साधारण नियंत्रण के अधीन रहते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के नियंत्रण में होंगे
Session court
Chief judicial
Magistrate.
धारा 16.महानगर मजिस्ट्रेट :-
1. जो राज्य सरकार उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात् अधिसचूना द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
धारा 17. मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट और अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट आदि :-
उच्च न्यायालय प्रत्येक महानगर क्षेत्र में एक महानगर मजिस्ट्रेट को मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगी
धारा 18.विशेष महानगर मजिस्ट्रेट :-
1. केन्द्रीय या राज्य सरकार उच्च न्यायालय से ऐसा करने के अनुरोध पर उच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को जो सरकार के अधीन कोई पद धारण करता है या जिसने पद धारण किया है किसी जिले में विशेष या विशेष वर्ग के मामलों के संबंध में प्रथम वर्ग एवं द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट को विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकता है। परन्तु ऐसी शक्ति ऐसे व्यक्ति को प्रदान नहीं की जायेगी जिसके पास विधिक अर्हता या अनुभव न हो।
2. एक समय में एक वर्ष के लिए |
3. स्थानीय अधिकारिता के बाहर के किसी महानगर शक्तियों के लिए सशक्त कर सकता है।
धारा 19. महानगर मजिस्ट्रेटों का अधीनस्थ होना :-
प्रत्येक मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट और प्रत्येक अपर मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के अधीनस्थ होंगे और अन्य महानगर मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के साधारण नियंत्रण -के अधीन रहते हुए मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होगा |
SJ
Acmm/cmm
Other mm
धारा 20.कार्यपालक मजिस्ट्रेट
1. राज्य सरकार प्रत्येक जिले और प्रत्येक महानगर क्षेत्र में उतने व्यक्तियों को कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकती है और उनमें से एक को जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त करेगी।
2. पीठासीन उच्च न्यायालय द्वारा 2. कार्यपालक मजिस्ट्रेट को अपर का नियुक्त किए जाएंगे। जिला मजिस्ट्रेट नियुक्त कर सकेगी।
3. कार्यपालक मजिस्ट्रेट की सब शक्तियां या उनमें से कोई शक्ति पुलिस आयुक्त को प्रदत्त करने से राज्य सरकार को प्रवारित नहीं करेगी।
धारा 21.विशेष कार्यपालक मजिस्ट्रेट :-
1. राज्य सरकार जितने आवश्यक समझे उतने एवं जितनी अवधि उचित लगे नियुक्त कर सकेगी
धारा-22. कार्यपालक मजिस्ट्रेटों की स्थानीय अधिकारिता :-
राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन रहते हुए जिला मजिस्ट्रेट समय-समय पर उन क्षेत्रों की स्थानीय सीमाए परिनिश्चित कर सकता है।
धारा 23.कार्यपालक मजिस्ट्रेटों का अधीनस्थ होना :-
अपर जिला मजिस्ट्रेट से भिन्न सब कार्यपालक मजिस्ट्रेट जिला मजिस्ट्रेट के अधीनस्थ होगा एवं प्रत्येक कार्यपालक मजिस्ट्रेट जो उपखण्ड को शक्ति का प्रयोग कर रहा है वह जिला मजिस्ट्रेट के साधारण नियंत्रण के अधीन रहते हुए उपखण्ड मजिस्ट्रेट के भी अधीनस्थ होगा।
धारा 24. लोक अभियोजक :-
1. प्रत्येक उच्च न्यायालय के लिए, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार उस उच्च न्यायालय से परामर्श के पश्चात् यथास्थिति, केन्द्रीय या राज्य सरकार की ओर से उस उच्च न्यायालय में किसी अभियोजन, अपील या अन्य कार्यवाही के संचालन के लिए एक लोक अभियोजक नियुक्त करेगी और एक या अधिक अपर लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती है।
2. केन्द्रीय सरकार स्थानीय क्षेत्र में किसी वर्ग के मामलों के संचालन के प्रयोजनों के लिए एक या अधिक लोक अभियोजक नियुक्त कर सकती है।
3. अपर लोक अभियोजक भी नियुक्त कर सकती है।
- परन्तु एक जिले के लिए नियुक्त लोक अभियोजक नियुक्त किया जा सकता है।
4. जिला मजिस्ट्रेट सेशन न्यायाधीश के परामर्श से ऐसे व्यक्तियों के नामों का एक पैनल तैयार करेगा जो उसकी राय में उस जिले के लिए लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त किए जाने के योग्य है।
5. ऐसे व्यक्ति को तब तक लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त नहीं किया जायेगा जब तक इस नाम जिला मजिस्ट्रेट द्वारा बनाए गए पैनल में ना हो।
6. राज्य में अभियोजन अधिकारियों का नियमित काडर है वहाँ राज्य सरकार ऐसा काडर गठित करने वाले व्यक्तियों में से ही लोक अभियोजक।
7 . लोक अभियोजक या अपर लोक अभियोजक नियुक्त किए जाने का पात्र तभी होगा जब वह कम से कम 7 वर्ष तक अधिवक्ता के रूप विधि व्यवसाय करता रहा।
8. विशेष लोक अभियोजक जो कम से कम 10 वर्ष तक विधि व्यवसाय करता रहा हो।
- परन्तु पीड़ित व्यक्ति को अभियोजक की सहायता के लिए अपनी पसंद का अधिवक्ता नियुक्त करने के लिए अनुज्ञात कर सकेगा।
धारा 25. सहायक लोक अभियोजक :-
- राज्य सरकार प्रत्येक जिले में मजिस्ट्रेटों के न्यायालयों में अभियोजन का संचालन करने के लिए एक या अधिक सहायक लोक अभियोजक नियुक्त करेगी।
1A. एक से अधिक सहायक लोक अभियोजक भी नियुक्त कर सकेगी
2. कोई पुलिस अधिकारी सहायक लोक अभियोजक नियुक्त होने का पात्र नहीं होगा उपधारा 3 के सिवाय
3.सहायक लोक अभियोजक किसी विशिष्ट मामले के प्रयोजनों के लिए उपलब्ध नहीं वहाँ जिला मजिस्ट्रेट किसी अन्य व्यक्ति को उस मामले का भारसाधक लोक सहायक अभियोजक नियुक्त कर सकता है।
परन्तु कोई पुलिस अधिकारी इस प्रकार नियुक्त नहीं किया जाएगा-
(a) उसने अपराध के अन्वेषण में कोई भाग लिया है।
(b) यदि वह निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का है।
धारा 25A अभियोजन निदेशालय –
1. राज्य सरकार एक अभियोजन निदेशालय की स्थापना कर सकती है जिसमें एक अभियोजन निदेशक एवं उपनिदेशक होंगे।
2.तभी पात्र होगा जब वह अधिवक्ता के रूप में कम से कम 10 वर्ष तक व्यवसाय में रहा है।
3. नियुक्ति उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सहमति से की जाएगी।
4.अभियोजन निदेशालय का विभागाध्यक्ष के प्रशासकीय नियंत्रण के अन्तर्गत कार्य करेगा।
5. प्रत्येक लोक अभियोजक, अपर लोक अभियोजक और विशेष लोक अभियोजक अभियोजन निदेशक के अधीनस् होंगे।
6. लोक अभियोजक के कृत्यों का पालन करने में इस धारा के उपबंध राज्य के महाधिवक्ता को लागू नहीं होंगे।
न्यायालय की शक्ति 26-35
धारा 26. अपराध विचारण की शक्ति :-
दंडादेश की शक्ति धारा 28-29
धारा 27.किशोरों के मामलों में अधिकारिता
शक्तियां धारा 32-35
धारा 26. अपराध विचारण की शक्ति
- IPC के अधीन किसी अपराध का विचारण-
(a) उच्च न्यायालय (b) सेशन न्यायालय
(c) अन्य न्यायालय है। प्रथम अनुसूची में दर्शित किया गया
- किसी अन्य विधि के अधीन किसी अपराध का विचारण
(a) उच्च न्यायालय (b) अन्य न्यायालय जो प्रथम अनुसूची में विनिर्दिष्ट हो ।
* परन्तु IPC की धारा 376, 376A-376E के अधीन किसी अपराध का विचारण जहाँ तक साध्य हो जिसकी पीठासीन महिला रह रही हो।
धारा 27. किशोरों के मामलों में अधिकारिता : –
1. मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय नहीं है।
2. जिसकी आयु उस तारीख को, जब वह न्यायालय के समक्ष हाजिर हो या लगाया जाए।
3. सोलह वर्ष से कम है।
4.मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा या किसी ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है।
धारा 28. दंडादेश जो उच्च न्यायालय और सेशन न्यायाधीश दे सकेंगे :-
उच्च न्यायालय
विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दंडादेश
सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश
विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दंडादेश सिवाय मृत्युदंड के उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट किए जाने की आवश्यकता
सहायक सेशन न्यायाधीश
मृत्युदंड या आजीवन कारावास या 10 वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास के दंडादेश के सिवाय कोई भी दंडादेश
धारा 29. दंडादेश जो मजिस्ट्रेट दे सकेंगे :-
- प्रथम वर्ग मजि. (3 वर्ष + 10,000 रु)
- द्वितीय वर्ग मजि.( 1 वर्ष + 5000 रु.)
- मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (7 वर्ष + जुर्माना)
मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय की शक्ति होगी
धारा 30. जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने का कारावास का दण्डादेश :–
1. किसी मजिस्ट्रेट का न्यायालय जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर इतनी अवधि का कारावास अधिनिर्णीत होने पर इतनी अवधि का कारावास अधिनिर्णीत कर सकता है जो विधि द्वारा प्राधिकृत है-
* परन्तु यह अवधि-
(a) धारा 29 के अधीन मजिस्ट्रेट की शक्ति नहीं होगी
(b) जहाँ कारावास मुख्य दण्डादेश के भाग के रूप में अधिनिर्णीत किया वहाँ वह उस कारावास का » अधिक न होगा जिसको मजिस्ट्रेट देने के लिए सक्षम हो
2. धारा 29 में मजिस्ट्रेट द्वारा दी जा सकने वाली अवधि में व्यतिक्रम करने पर वह कारावास मुख्य दण्डादेश के अतिरिक्त होगा।
धारा 31. एक ही विचारण में कई अपराधों के लिए दोषसिद्ध होने के मामलों में दण्डादेश–
1. जब एक विचारण में कोई व्यक्ति दो या अधिक अपराधों के लिए दोषसिद्ध किया जाता है।
2.IPC की धारा 71 के अधीन रहते हुए न्यायालय उसे उन अपराधों के लिए विहित विभिन्न दण्डों में से उन दण्डों केलिए
3. यदि न्यायालय ने यह निदेश न दिया हो कि ऐसे दंड साथ-साथ भोगे जाएंगे तो वे ऐसे क्रम से एक के बाद एक प्रारंभ होंगे जिसका न्यायालय निदेश दे।
4.जहाँ दंडादेश क्रमवर्ती हो वहाँ न्यायालय के लिए आवश्यक नहीं होगा कि अपराधी को उच्चतर न्यायालय के समक्ष विचारण के लिए भेजे जाएंगे।
* परन्तु किसी भी दशा में-
(a) किसी भी दशा में 14 वर्ष से अधिक नहीं
(b) संकलित दंड उस दंड की मात्रा के दुगुने से अधिक न होगा जिसे एक अपराध के लिए देने के लिए वह न्यायालय सक्षम है।
( c) क्रमवती दण्डादेशों का योग अपील के प्रयोजन के लिए एक ही दण्डादेश समझा जायेगा
शक्तियाँ
धारा 32.शक्तियां प्रदान करने का ढंग:-
· उच्च न्यायालय राज्य सरकार कर सकती है
· आदेश उस तारीख से प्रभावी होगा जिस तारीख को सशक्त किए गए व्यक्ति को संसूचित किया जाता है।
धारा 33. नियुक्त अधिकारियों की शक्तियाँ:-
धारा 34. नियुक्त अधिकारियों की शक्तियाँ
धारा 35.न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों की शक्तियों का उनके पद उत्तरवर्तियों द्वारा प्रयोग किया जा सकना |
अध्याय 4
धारा 36.वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की शक्तियां
पुलिस जाने के भारसायक पंक्ति से वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को पाने की सीमाओं की शक्तियां प्रदान की जा सकती है।
मजिस्ट्रेट और पुलिस को सहायता (धारा 37-40)
धारा 37. जनता कब मजिस्ट्रेट और पुलिस की सहायता करेगी –
a. किसी अन्य ऐसे व्यक्ति को जिसे ऐसा मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी करने के लिए प्राधिकृत पकडना या उसका निकल भागने से रोकना
b. परिशांति भंग का निवारण या दमन
C. किसी रेल, नहर, तार या लोक-संपत्ति को क्षति पहुंचाने के प्रयत्न का निवारण।
धारा 38. पुलिस अधिकारी से भिन्न ऐसे व्यक्ति को सहायता जो वारण्ट का निष्पादन कर रहा है :-
कोई भी अन्य व्यक्ति उस वारण्ट के निष्पादन में सहायता कर सकता है यदि वह व्यक्ति, जिसे वारण्ट निर्दिष्ट है पास में है और वारण्ट के निष्पादन में कार्य कर रहा है।
धारा 39. कुछ अपराधों की इत्तिला का जनता द्वारा दिया जाना–
(i) धारा 121-126 और 130 (अध्याय 6)
(ii) धारा 143/144 145, 147 और 148 (अध्याय 8)
(iii) धारा 161-165A
(iv) धारा 272-278
(v) धारा 302,303 और 304
(VA) धारा 35TA
(vi) धारा 382
(vii) धारा 409
(viii) धारा 392-399 और 402
(ix) धारा 431-439
(x) धारा 449-450
(xi) धारा 456-460
(XII) धारा 489A-489E
धारा 40. ग्राम के मामलों के संबंधों में नियोजित अधिकारियों के कतिपय रिपोर्ट करने का कर्तव्य –
(a) जो चुराई हुई संपत्ति का कुख्यात प्रापक या विक्रेता है स्थायी या अस्थायी निवास
(b) किसी व्यक्ति का जिसका वह ठग, लुटेरा, निकल भागा सिद्धदोष या उद्घोषित अपराधी होना
(c) अजमानतीय अपराध या IPC की धारा 143, 144, 145, 147, 148
(d) ऐसी परिस्थितियों में जिनसे उचित रूप से संदेह पैदा होता है कि ऐसे व्यक्ति के संबंध में अजमानतीय
अपराध किया गया है गायब हो जाना।
(e) ERI 231-288,302, 304, 382, 392-399 402, 435 436, 449, 450, 457-460, 489A,489C,489d
2. (1) ग्राम ग्राम भूमियां
(ii) उद्घोषित अपराधी- ऐसा व्यक्ति भी है जिसे भारत के किसी ऐसे राज्यक्षेत्र में जिस पर इस संहिता का विस्तार नहीं है किसी न्यायालय या प्राधिकारी ने किसी ऐसे कार्य के बारे में अपराधी उद्घोषित किया है जो IPC की धारा 302, 304, 382, 392, 399, 402, 435, 436, 449, 450, 557, 460 के अधीन दंडनीय अपराध होता।
व्यक्तियों की गिरफ्तारी अध्याय-5
- गिरफ्तारी 41-46
- तलाशी 47-49, 52
- अधिकारी/कर्तव्य 50-50A, 52
- परीक्षण 53-60A
धारा 41. पुलिस वारण्ट के बिना कब गिरफ्तार कर सकेगी :-
1. पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना और वारण्ट के बिना किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है.
(a) उपस्थिति में संज्ञेय अपराध करता है।
(b) जिसके विरुद्ध इस बारे में उचित परिवाद या विश्वसनीय इत्तिला प्राप्त हो चुकी है कि उसने 7 वर्ष से कम कारावास से दण्डनीय अपराध कारित किया हैं चाहे जुर्माने सहित या जुर्माने के बिना संज्ञेय अपराध किया यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी कर दी जाती है-
(i) पुलिस अधिकारी के पास ऐसे परिवाद, इतिला या संदेह के आधार पर यह विश्वास करने का कारण है कि उस व्यक्ति ने उक्त अपराध किया है।
(ii) पुलिस अधिकारी का यह समाधान हो गया है कि ऐसे गिरफ्तारी
- व्यक्ति को कोई और अपराध करने से निवारित करने के लिए
(b) अपराध के समुचित अन्वेषण के लिए
(c) अपराध के साक्ष्य को गायब करने या ऐसे साक्ष्य के साथ किसी भी रीति में छेड़छाड़ करने से
(d) तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाया जा सके, निवारित करने के लिए |
e) ऐसे व्यक्ति करेगा को गिरफ्तार नहीं किया जाता जब तक न्यायालय में उसकी उपस्थिति जब भी अपेक्षित हो, सुनिश्चित नहीं की जा सकती, और पुलिस अधिकारी ऐसी गिरफ्तारी करते समय उसके कारणों को लेखबद्ध करेगा !
(f) जिस पर संघ के सशस्त्र बलों में से किसी से अभित्याजक होने का उचित संदेह है।
(g) जो भारत से बाहर किसी स्थान में किसी ऐसे कार्य किए जाने से यदि भारत में किया गया हो तो
अपराध के रूप में दण्डनीय होता !
(h) धारा 356(5) को छोड़ा गया सिद्धदोष व्यक्ति
(i) जिसकी गिरफ्तारी के लिए किसी अन्य पुलिस अधिकारी से लिखित या मौखिक अध्यपेक्षा प्राप्त हो चुकी है।
2 धारा 42 के उपबंधों के अधीन रहते हुए ऐसे किसी व्यक्ति को जो किसी असंज्ञेय अपराध से संबंध है या जिसके विरुद्ध कोई परिवाद किया गया है।
धारा 41A पुलिस अधिकारी के समक्ष हाजिर होने की सूचना –
1. उस व्यक्ति को जिसके विरुद्ध इस बारे में उचित परिवाद किया जा चुका है या विश्वसनीय इत्तिला प्राप्त हो चुकी, उसके समक्ष या ऐसे अन्य स्थान पर जो सूचना में विनिर्दिष्ट किया जाए उपसंजात होने के लिए निदेश देते हुए सूचना जारी कर सकेगा।
2. वहाँ उस व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह सूचना के निबंधनों का अनुपालन करे।
3.ऐसा व्यक्ति सूचना का अनुपालन करता है वहाँ उसे सूचना में विनिर्दिष्ट अपराध के संबंध में तब तक गिरफ्ता नहीं किया जाएगा जब तक लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से पुलिस अधिकारी की यह राय न हो कि उसे गिरफ्तार कर लेना चाहिए।
धारा 41B. गिरफ्तारी की प्रक्रिया और गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी के कर्तव्य–
a. अपने नाम की सही प्रकट और स्पष्ट पहचान धारण करेगा जिससे उसकी पहचान आसानी से हो सके।।
b. गिरफ्तारी का ज्ञापन तैयार करेगा जो-
(i) गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के कुटुंब के सदस्य या उसके परिक्षेत्र के प्रतिष्ठित सदस्य के कम से कम एक साक्षी द्वारा अनुप्रमाणित |
(ii) गिरफ्तार किए गए व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर होगा
(iii) गिरफ्तार व्यक्ति जिस किसी का भी नाम दे उसे सूचना देगा।
धारा 41C राज्य सरकार प्रत्येक जिले व राज्य स्तर पर एक पुलिस नियंत्रण कक्ष की स्थापना करेगी।
धारा 41. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को पूछताछ के दौरान अपनी पसंद के अधिवक्ता से मिलने का अधिकार होगा– संपूर्ण पूछताछ से नहीं
धारा 42. नाम और निवास बताने से इंकार करने पर गिरफ्तारी –
1. जहाँ पर कोई व्यक्ति पुलिस अधिकारी की उपस्थिति में असंज्ञेय अपराध करता है या उस पर ऐसे अपराध का अभियोग लगा है उस अधिकारी से मांग पर
(a) अपना नाम और निवास बढ़ाने से इंकार करता है।
(b) ऐसा नाम निवास बताता है जो मिथ्या है।
(c) तब उसका नाम और निवास अभिनिश्चित करने के लिए गिरफ्तार किया जाता है।
2. जैसे ही सही नाम व निवास बताया उसे प्रतिभू सहित या रहित छोड़ दिया जायेगा किन्तु यदि वह भारत का निवासी नहीं है तब प्रतिभू के बिना नहीं छोड़ा जायेगा।
यदि गिरफ्तारी उसका सही नाम और निवास अभिनिश्चित नहीं किया जा सकता है या वह पर्याप्त प्रतिभू देने में असफल रहता है तब अधिकारिता रखने वाले निकटतम मजिस्ट्रेट के पास तत्काल भेज दिया जाएगा।
के 24 घंटों में
धारा 43. प्राइवेट व्यक्ति द्वारा गिरफ्तारी और ऐसी गिरफ्तारी पर प्रक्रिया –
1. कोई प्राइवेट व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को जो उसकी उपस्थिति में-
(a) अजमानतीय और संज्ञेय अपराध करता है।
(b) उद्घोषित अपराधी को गिरफ्तार कर सकता है।
(c) ऐसे गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अनावश्यक विलंब के बिना पुलिस अधिकारी के हवाले कर देगा
(d) पुलिस अधिकारी की अनुपस्थिति में ऐसे व्यक्ति को अभिरक्षा में निकटतम पुलिस थाने ले जाएगा या भिजवाएगा।
2. यदि विश्वास करने का कारण की वह धारा 41 के उपबंधों के अंतर्गत आता है तो पुलिस अधिकारी उसे फिर से गिरफ्तार करेगा।
3. जहाँ यह विश्वास करने का कारण कि व्यक्ति ने असंज्ञेय अपराध किया है वहाँ नाम निवास पूछने के पश्चात् छोट देगा एवं जहाँ विश्वास करने का कारण नहीं वहाँ तुरन्त छोड़ देगा।
धारा 44. मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी –
1. जब कार्यपालक या न्यायिक मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर कोई अपराध किया जाता है तब :-
(a) वह अपराधी को स्वयं गिरफ्तार कर सकता है या आदेश दे सकता है।
(b) अपराधी को अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।
2. गिरफ्तारी के वारण्ट जारी कर सकता है।
धारा 45. सशस्त्र बलों के सदस्यों का गिरफ्तारी से संरक्षण–
1. संघ के सशस्त्र बलों का कोई भी सदस्य अपने पदीय कर्तव्यों का निर्वहन करने में अपने द्वारा की गई या की जाने के लिए तब तक गिरफ्तार नहीं किया जाएगा जब तक केंद्रीय सरकार की सहमति नहीं ले ली जाती।
धारा 46 गिरफ्तार कैसे की जाएगी –
1. गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति के शरीर को वस्तुतः छुएगा या परिरुद्ध करेगा जब तक उसने वचन या कर्म अपन को अभिरक्षा में समर्पित न कर दिया हो।
* परन्तु महिला की गिरफ्तारी जब तक परिस्थिति प्रतिकूलता नहीं दर्शाती हो गिरफ्तारी की मौखिक सूचना पर अभिरक्षा के लिए उसको उपधारित किया जायेगा।
2. यदि ऐसा व्यक्ति अपने गिरफ्तार किए जाने के प्रयास का बलात प्रतिरोध करता है तो ऐसा पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति गिरफ्तारी करने के लिए आवश्यक सबै साधनों को उपयोग में ला सकता है।
3. मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का अभियोग नहीं है मृत्यु कारित करने का अधिकार नहीं है। 4. केवल असामान्य परिस्थितियों के अतिरिक्त किसी भी महिला को सूर्यास्त के पश्चात् और सूर्योदय के पूर्व गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा।
5.महिला पुलिस अधिकारी एक लिखित रिपोर्ट बनाकर प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट जिसके क्षेत्राधिकार में अपराध किया गया है।
धारा 47. उस स्थान की तलाशी जिसमें ऐसा व्यक्ति प्रविष्ठ हुआ है जिसकी गिरफ्तारी की जानी है–
1. पुलिस अधिकारी द्वारा मांग की जाने पर उसमें उसे अबाध प्रवेश करने देगा और उसके अंदर तलाशी लेने के लिए सब उचित सुविधाएं देगा।
2. किसी बाहरी या भीतरी द्वार या खिड़की को तोड़कर खोल ले यदि अपने प्राधिकार और प्रयोजन की सूचना देने के तथा प्रवेश करने की सम्यक् रूप से मांग करने के पश्चात् वह अन्यथा प्रवेश नहीं कर सकता है।
* परन्तु ऐसा कोई स्थान ऐसा कमरा है जो ऐसी स्त्री के वास्तविक अधिभोग में है जो रूढ़ि के अनुसार लोगों के सामने नहीं आती है हटने के लिए स्वतंत्र है।
3. अपने आपको स्वतंत्र करने के लिए तोड़कर खोल सकता है।
धारा 48. अन्य अधिकारिताओं में अपराधियों का पीछा करना :- भारत के किसी स्थान में उस व्यक्ति का पीछा कर सकता है।
धारा 49. अनावश्यक अवरोधक न करना :- उसको रोकने के लिए जितना आवश्यक उतना
धारा 50. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के आधारों और जमानत के अधिकार की इत्तिला दी जाती–
1. जिसके लिए वह गिरफ्तार किया गया है पूर्ण विशिष्टयों या ऐसी गिरफ्तारी के अन्य आधार तुरंत संसूचित करेगा
2. गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को इत्तिला देगा कि वह जमानत पर छोड़े जाने का हकदार है और वह अपनी और से प्रतिभुओं का इंतजाम करे।
धारा 50A. गिरफ्तारी करने वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी आदि के बारे में, नामित व्यक्ति को जानकारी देने की बाध्यता