कब किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा वारन्ट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है? ओर गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार ….दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41

कब किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा वारन्ट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है?

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के अन्तर्गत पुलिस द्वारा किसी व्यक्ति को निम्नांकित दशाओं में वारन्ट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है-

(1) जो किसी संज्ञेय अपराध से सम्बद्ध रह चुका है या जिसके बारे में संज्ञेय अपराध से सम्बद्ध रहने का उचित सन्देह विद्यमान् है,

(2) जो अपने कब्जे में विधिपूर्ण प्रतिहेतु के बिना गृह भेदन का कोई उपकरण रखता है,

(3) जिसके कब्जे में कोई ऐसी चीज पाई जाती है जिसके चुराई हुई सम्पत्ति होने का उचित रूप से संदेह किया जा सकता है,

(4) जो या तो इस संहिता के अधीन या राज्य सरकार के आदेश द्वारा अपराधी उ‌द्घोषित किया जा चुका है,

(5) जो पुलिस अधिकारी को उस समय बाधा पहुँचाता है। जब वह अपना कर्तव्य कर रहा है या जो विधिपूर्ण अभिरक्षा से निकल भागा है या निकल भागने का प्रयत्न करता है,

(6) जिस पर संघ के सशस्त्र बलों में से किसी से अभित्यजक होने का उचित सन्देह है,

(7) जो भारत के बाहर किसी स्थान में किसी ऐसे कार्य किये जाने से सम्बद्ध रह चुका है जो यदि भारत में किया गया होता तो अपराध के रूप में दण्डनीय होता और जिसके लिए वह प्रत्यर्पण सम्बन्धी किसी विधि के अधीन या अन्यथा भारत में पकड़ने जाने का या अभिरक्षा के निरुद्ध किये जाने का भागी है,

(8) जो छोड़ा गया सिद्धदोष होते हुए धारा 356 (5) के अधीन बनाये गये नियम को भंग करता है, अथवा

(9) जिसकी गिरफ्तारी के लिए किसी अन्य पुलिस अधिकारी से लिखित या मौखिक अध्यपेक्षा प्राप्त हो चुकी है। उपरोक्त के अलावा पुलिस अधिकारी द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति को भी वारन्ट के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है जो संहिता की धारा 109 या 110 में वर्णित किसी एक यहां एक अधिक वर्ग में आता हो

सूचना आवश्यक गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों के स्पष्टीकरण हेतु किस हीमा तक स्पष्ट किया जाना चाहिए। हाउस ऑफ लाईस के अभिभाषण द्वारा उचित मार्ग दर्शन किया जा सकता है।

पाँच अवधारणाएं विस्काउण्ट साइमन द्वारा स्थापित की गई है-

(1) जब पुलिस अधिकारी, गम्भीर अपराध के उचित सन्देह पर या अन्य ऐसे अपराध के सन्देह पर जिसमें वह बिना वारण्ट के गिरफ्तार कर सकता है, किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करता है, तो उस व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी दी जानी चाहिए। पुलिस अधिकारी को यह शक्ति नहीं है कि वह गिरफ्तारी के कारण को अपने तक ही रखे और गिरफ्तार व्यक्ति को गलत सूचना दे। प्रत्येक नागरिक को यह जानने का अधिकार है कि उसे किस अपराध या अपराध के संदेह में उसे गिरफ्तार किया गया है।

(2) यदि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी नहीं दी जाती है तो कुछ अपवादों को छोड़कर पुलिस अधिकारी अवैध परिरोध का दोषी होगा।

(3) गिरफ्तारी के कारण की जानकारी देना वहाँ आवश्यक नहीं है, जहाँ परिस्थितियाँ स्वयं इस प्रकृति की हैं कि गिरफ्तार व्यक्ति को स्वयं गिरफ्तारी के कारण को जान लेना चाहिए कि उसे क्यों निरुद्ध किया गया है।

(4) गिरफ्तारी की सूचना पाने के अधिकार का तात्पर्य यह नहीं है कि संक्षेप में गिरफ्तारी के कारण को बता दिया जाय बल्कि प्रत्येक नागरिक को स्वतन्त्रता के अधिकार प्राप्त होने के कारण उसे पूर्ण तथ्यों को सूचित किया जाय जिससे वह स्वयं अपनी सफाई यदि कोई हो तो पेश कर सके।

(5) यदि अभियुक्त स्वयं ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर देता है कि गिरफ्तारी का कारण बताना सम्भव न हो सके तो वह सूचना न पाने के विषय में शिकायत नहीं कर सकता है..

पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी की शक्ति पुलिस अधिकारी को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 54 (7) के अन्तर्गत कार्यवाही करने के पूर्व स्वयं तथ्यों पर विचार कर लेना चाहिए। दूसरे पुलिस अधिकारी के फैसले का सहारा उसे नहीं लेना चाहिए। । रोशन लाल बनाम सेन्ट्रल जेल, ए० आई० आर० 1950 मध्य प्रदेश 83]

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के अन्तर्गत प्राप्त गिरफ्तार करने की शक्ति का प्रयोग इस धारा की सीमा के बाहर भी कर सकता है। [मीर साह बनाम इम्परर, 16 कि० लॉ ज० 15]

जहाँ पुलिस सब इन्स्पेक्टर ने अभियुक्त को रंगे हाथ पकड़ा जब कि वह चन्दन की लकड़ी पुरा कर ले जा रहा था। उसको गिरफ्तार करने के बाद संबंधित थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई। अभियुक्त की गिरफ्तारी का निरोध इस आधार पर अवैध नहीं कही जा सकती कि यह गिरफ्तारी उस सब-इन्स्पेक्टर द्वारा की गई थी, जिसने परिवाद किया था।

[गुलाब जान बनाम सब-इन्स्पेक्टर ऑफ पुलिस, 1993 क्रि० लॉ ज० 738 (कर्नाटक)]

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 55 के अन्तर्गत विशेष शक्ति, धारा 41 के अन्तर्गत विनिर्दिए बिना वारण्ट के गिरफ्तार करने की सामान्य शक्ति को, प्रभावित नहीं करती क्योंकि पुलिस अधिकारी धारा 55 के अन्तर्गत गिरफ्तार करने की शक्ति पुलिस अधिकारी के सामान्य नियम द्वारा प्राप्त विशेषाधिकार को सीमित नहीं करती।

गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारी को वर्दी में होना आवश्यक यह आवश्यक है कि पुलिस अधिकारी अपने यूनीफार्म में हो। भले ही कोई आपात स्थिति हो। यदि विषम परिस्थिति में बिना बदीं के है, तो उनों स्पष्ट करना चाहिए कि वे विधि विहित पुलिस अधिकारी हैं।

[इम्परर बनाम अबुल हमीद, 13 कि० लॉ ज० 338]

यदि किसी पुलिस अधिकारी द्वारा कोई व्यक्ति अनाधिकृत रूप में गिरफ्तार किया जा रहा है और पुलिस अधिकारी सादी वर्दी में है साथ ही यह भी नहीं बताता कि वह पुलिस अधिकारी है, तो ऐसे गिरफ्तारी होने वाले व्यक्ति को प्रतिरक्षा का अधिकार प्राप्त है। वह अपने गिरफ्तारी को रोकने के लिए आवश्यक शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

(इम्परर बनाम असुल हमीद, 43 कि० लॉ ज० 338]

गिरफ्तारी ठोस आधार पर ही सम्भव किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी यां निरोध मन की चंचलता या मनमानेपन का विषय नहीं है कि जब जिसे चाहा गिरफ्तार कर लिया गया। मात्र इस तथ्य के आधार पर कि व्यक्तियों का एक समूह किसी निश्चित स्थान पर इकट्ठा हुआ है, और वे अपराध कारित करने वाले हैं, गिरफ्तार किया जाना न तो विधिक है न ही न्यायोचिता वे यदि गिरफ्तारी का विरोध करते हैं, तो दंगा के लिए दोषी नहीं होगे। इस मामले में पुलिस पार्टी को सूचना थी कि वे एक ट्रेन लूटने वाले थे।

(आर अहिर बनाम किंग इम्परर, ए० आई० आर० 1926 पटना 560]

कौन सा परिवाद या संदेह युक्तियुक्त है यह मामले विशेष परिस्थितियों पर आधारित है। किन्तु गिरफ्तारी निश्चित तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए मात्र सूचना के आधार पर गिरफ्तारी नहीं की जा सकती मामूली तथ्य जिनकी पुष्टि बाद में की जाएगी पर आधारित युक्तियुक्त नहीं है।

गिरफ्तारी में उच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप की शक्ति-दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 (1) (छ) किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए पुलिस अधिकारी को मात्र संज्ञेय अपराध में ही शक्ति प्रदान करती है। यह वैधानिक शक्ति पुलिस अधिकारी को संज्ञेय अपराध की विवेचना के दौरान प्रयोग करने के लिए प्रदान की गई है। यह विवेचना एक क्रम है, जिसके अन्तर्गत अभियुक्त से पूछताछ की जाती है और इसके दौरान अपराध कारित करना स्वीकार करता है तथा स्वीकृति के आधार पर बरामदगी अपराध की पुष्टि करती है। साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अन्तर्गत ऐसा साक्ष्य सुसंगत होता है। अन्तर्निहित शक्ति के द्वारा भी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के अन्तर्गत प्राप्त पुलिस अधिकारी की गिरफ्तार करने की शक्ति में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है।

उच्च न्यायालय को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 में भी पुलिस की गिरफ्तारी की शक्ति में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। यदि पुलिस अधिकारी दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 (1) (ए) का उल्लंघन करते हैं या दोषपूर्ण विवेचना करते हैं या प्रथम सूचना रिपोर्ट में बिना अपराध स्पष्ट किये हुये गिरफ्तार करते हैं तो भी उच्चतम न्यायालय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अन्तर्गत अन्तर्निहित शक्ति के अन्तर्गत अवैध गिरफ्तारी के लिये भी हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। अन्तर्निहित शक्ति के अन्तर्गत न्यायालय तभी हस्तक्षेप कर सकता है। जब अभियोग पत्र न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया जाता है। पुलिस अधिकारी की विवेचना में हस्तक्षेप करने की शक्ति उच्च न्यायालय को धारा 482 के अन्तर्गत प्राप्त नहीं है। भले ही विवेचना अवैध या गलत चल रही हो। यदि उच्च न्यायालय इस बात से सन्तुष्ट है कि कोई विवेचना दोषपूर्ण चल रही है तथा यह धारा 41 (1) के विरुद्ध है, तो उच्च न्यायालय मैण्डमस जारी कर सकती है कि पुलिस अधिकारी विवेचना में संयम बरते एवं याची को निरर्थक परेशान न किया जाय। ऐसा मात्र याचिका पर किया जा सकता है।

[राम लाल यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 1989 कि० लॉ ज० 1013 (इला०): (1989) 2 क्राइम्स 491: 1989 इस्ट क्रि० के० 145 1989 ए० डब्ल्यू० सी० 270: 1989 इला० क्रि० के०181 : 1989 इ०एफ० आर० 259]

बहुधा यह होता है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराते समय अभियुक्त का नाम न मालूम होने से प्रथम सूचना रिपोर्ट द्वारा संज्ञेय अपराध का कारित होना ही स्पष्ट होता है। किन्तु अभियुक्त का नाम नहीं मालूम होता है। विवेचना के दौरान अभियुक्त की जानकारी हो पाती है। पुलिस द्वारा अभियुक्त की दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 (1) (क) के अन्तर्गत की गई गिरफ्तारी के विरुद्ध उब न्यायालय भी अन्तर्निहित शक्ति के अन्तर्गत हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

[मु० मुस्तफा बनाम सरकार, 1987 इलाहाबाद लॉ जनरल 611: (1987) 1 क्राइम्स 510: 1987 इलाहाबाद क्रिमिनल केसेज 112]

यदि धारा 41 के अन्तर्गत निरुद्ध व्यक्ति की गिरफ्तारी की वैधता न्यायालय में लम्बित है तो – हैवियस कार्पस की याचिका नहीं दाखिल की जा सकती।

[आरिफ बनाम राज्य, ए० आई० आर० 1964 त्रि० 57: (1964) 2 कि० लॉ ज० 558]

उच्च न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियाँ- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 के अन्तर्गत पुलिस को प्रथम इत्तिला रिपोर्ट के आधार पर दर्ज कराए गए संज्ञेय अपराध का अन्वेषण करने की उसकी कानूनी शक्ति उक्त दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अधीन उच्च न्यायालय अन्तर्निहित शक्तियों को प्रयोग करते हुए किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

[पुत्तन सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और एक अन्य, (1988) 1 दा० नि० प० 519]

न्यायालय को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 (1) (क) के उल्लंघन में पुलिस अधिकारी द्वारा किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी में उस समय भी हस्तक्षेप करने की अन्तर्निहित शक्ति नहीं है, जबकि प्रथम इत्तिला रिपोर्ट में कोई अपराध प्रकट न किया गया हो अथवा अन्वेषण असद्भावपूर्ण रूप से किया गया हो।

[ रामलाल यादव और अन्य बनाम राज्य और अन्य, (1989) 2 दा० नि० प० 887]

किसी व्यक्ति द्वारा संज्ञेय अपराध किया गया होने के संदेह के आधार पर पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की शक्ति तुरन्त उपाय हेतु आवश्यक है तथापि नागरिक के आवागमन के मौलिक अधिकार का सदैव ध्यान रखा जाना चाहिए। इस शक्ति का प्रयोग मनमाने तौर पर अनुमित न होगी।

2. नाम और निवास बताने से इन्कार करने पर

[गंगा सिंह बनाम राज्य, (1980) 1 एम० पी० डब्ल्यू० एन० 230]


गिरफ्तारी का उपचार- गिरफ्तारी के बाद अभियुक्त दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 का अवलम्ब नहीं ले सकता बल्कि उसे धारा 437 या 439 के अन्तर्गत उपचार लेना चाहिए। ऐसे मामले में 438 के अन्तर्गत प्रार्थना-पत्र 209 के अन्तर्गत सुपुर्दगी आदेश या मामले को सत्र न्यायाधीश के यहाँ सुपुर्द किया जाएगा, पोषणीय नहीं होगा।

[ पद्म चन्द्र पण्डा बनाम एस० मोहन राव, 1987 क्रि० लॉ ज० 923]

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