36 कानूनी अधिकार जो हर भारतीय को पता होना आवश्यक है

36 कानूनी अधिकार जो हर भारतीय को पता होना आवश्यक है

भारत सरकार ने देश के प्रत्येक नागरिक को कानूनी रूप से अनेक अधिकार दिए हैं जिनकी जानकारी होना आवश्यक है।
नीचे कुछ महत्वपूर्ण कानूनी अधिकारों की जानकारी दी जा रही है-

(1) भारतीय कानून में नागरिक को ससम्मान जीवन निर्वाह का अधिकार है। प्रत्येक नागरिक को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है। प्रत्येक नागरिक को आजीविका कमाने का अधिकार है।

(2) कानून में प्रत्येक नागरिक को न्यायालय में अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार प्रदान किया गया है।
(3) कानूनी सहायता के (विधिक हकदार) नागरिकों को अपनी सुरक्षा के लिए निशुल्क वकील की सेवाएं सरकारी खर्च पर प्राप्त करने का अधिकार है।

(4) अपने साथ हुए जुर्म, अन्याय और अधिकार समाप्ति के विरुद्ध व्यक्ति को पुलिस में एफ.आई.आर. दर्ज करवाने का कानूनी अधिकार है।
(5) लोकहित से जुड़े मामलों के लिए कोई भी व्यक्ति उच्चतम न्यायालय में अपनी शिकायत लिखित रूप में डाक से प्रेषित कर सकता है।
(6) सार्वजनिक स्थानों पर अवरोध के विरुद्ध व्यक्ति कार्यकारी मजिस्ट्रेट व जिला मजिस्ट्रेट के पास परिवेदन दर्ज करवा सकता है .
(7) यदि जमानतीय मामले में व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है, तो वह जमानतीय अधिकार की मांग कर सकता है। इसके लिए जमानत पर रिहाई का कानूनी प्रावधान है।
(8) गिरफ्तार किया गया व्यक्ति न्यायिक साक्ष्य के लिएअपनी शारीरिक परीक्षा करवा सकता है।

(9) प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन रक्षा का अधिकार है, स्वयं का जीवन बचाने के लिए व्यक्ति हमलावर या हमलावरों के विरुद्ध संघर्ष करने का विधिक अधिकार रखता है।
(10) गर्भवती स्त्री को मृत्युदण्ड नहीं दिया जा सकता। इसके लिए दण्डादेश को स्थगित करवाने का अधिकार प्रदान किया गया है।
(11) प्रत्येक व्यक्ति को एफ. आई. आर. की निशुल्क प्रति प्राप्त करने का विधिक अधिकार प्राप्त है।
(12) मृत्युदण्ड के विरुद्ध यदि अनुज्ञात अवधि में अपील की गई है, तो मृत्युदण्ड की अपील को निरपराध होने तक स्थगित रखे जाने का प्रावधान है।

(13) किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दण्डित नहीं किया जा सकता, यदि अपराध दोहराया न गया हो।
(14) प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी गिरफ्तारी के कारणों को जान सके।
(15) बिना वारण्ट गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को पुलिस चौबीस घण्टों से अधिक समय तक गिरफ्तार करके नहीं रख सकती।

(16) अभियुक्त को कारावास की सजा होने पर वह न्यायालय के निर्णय की प्रति नि शुल्क प्राप्त कर सकता है।
(17) पुलिस द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति यदि चौबीस घण्टों में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश नहीं किया जाता, तो वह अपनी रिहाई के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट का प्रयोग कर सकता है।
(18) जेल मैन्यूअल के अनुसार कैदी व्यक्ति प्रत्येक मंगलवार या गुरुवार को प्रत्येक दिवस में दो व्यक्तियों से मुलाकात कर सकता है। वकील या वकीलों से मिलने के सम्बंध में उन्हें यह अधिकार है कि वह जब चाहें और जितनी बार चाहें अपने (कैदी) मुवक्किल से मुलाकात कर सकते हैं।
(19) व्यक्ति से उसकी मर्जी के विरुद्ध श्रम नहीं करवाया जा सकता, चाहे परिश्रमिक दे दिया गया हो।
(20) जेल में बन्द कैदियों को भी श्रम के बदले मजदूरी दिए जाने का प्रावधान है, जो उसे रिहाई के समय प्रदान की जाती है।
(21) पुलिस द्वारा एफ आई आर दर्ज न करने पर व्यक्ति, पुलिस अधीक्षक या अन्य सीनियर पुलिस अधिकारी को पत्र द्वारा अपराध की सूचना देकर एफ आई आर दर्ज करवा सकता है।
(22) अधिकार हनन के विरुद्ध व्यक्ति न्यायालय में परिवाद दायर कर सकता है।
(23) किसी भी व्यक्ति को गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता।
(24) स्त्रियों अथवा बालकों से अनैतिक श्रम करवाना दण्डनीय अपराधहै। उनसे जबरन भीख मंगवाना या वेश्यावृत्ति करवाना जुर्म है।
(25) चौदह वर्ष से कम उम्र के बालकों को कारखानों में श्रम पर नहीं रखा जा सकता।
(26) पत्नी को उसके पति के विरुद्ध एवं पति को पत्नी के विरुद्ध वैवाहिक स्थिति के दौरान की प्राइवेट बातों के लिए गवाही देने पर मजबूर नहीं किया जा सकता।
इसी प्रकार अपने ही मामले में व्यक्ति को स्वयं के खिलाफ गवाही व सबूत पेश करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

(27) सात वर्ष से कम उम्र के बालक द्वारा किया गया कार्य जुर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
(28) गिरफ्तार व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपनी गिरफ्तारी की सूचना अपने परिजनों, मित्रों, रिश्तेदारों व वकील को कर सके।
(29) फौजदारी धारा 47 के अनुसार महिला कैदी से पूछताछ एवं तलाशी का कार्य महिला द्वारा ही या महिला की उपस्थित में ही किया जा सकता है।

(30) प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी तय करने का अधिकार है।
(31) हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार पति द्वारा अर्जित सम्पत्ति पर पत्नी व उसके बच्चों को आधी आय व सम्पत्ति का अधिकार दिया गया है। (32) विधवा बहू को अपने ससुर की अर्जित सम्पत्ति का जायज अधिकारी माना गया है।
(33) अवयस्क व्यक्ति द्वारा की गई संविदा के लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

(34) उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के अनुसार एफ.आई.आर. किसी भी थाने में दर्ज करवाई जा सकती है। आवश्यक नहीं कि उसी थाने में प्राथमिकी दर्ज हो, जिस क्षेत्र में वारदात हुई हो। यदि पुलिस अधिकारी द्वारा आनाकानी की जाती है, तो इसकी लिखित शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों को दी जा सकती है।
(35) स्त्री धन को प्रत्येक कुर्की एवं नीलामी से मुक्त रखा गया है।
(36) प्रत्येक व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी अनुपस्थिति में कार्यवाही निष्पादन के लिए प्रतिनिधि नियुक्त कर सके।
(37) कारखाना अधिनियम 1948 के अनुसार प्रत्येक मजदूर को विधि द्वारा निर्धारित की गई सुविधाएं पाने का हक है। वह सुविधाएं निम्न प्रकार से हैं-

जिस कारखाने में पांच सौ से अधिक श्रमिक कार्य करते हैं, वहां एक श्रम कल्याण अधिकारी की कारखाना मालिक द्वारा नियुक्ति की जाएगी और वही उसका वेतन भी देगा।

→ कारखाने में फर्स्ट एण्ड बॉक्स होना चाहिए। 500 से अधिक श्रमिक होने पर डॉक्टर व नर्सिंग स्टॉफ के साथ उपचार कक्ष भी होना चाहिए।
→ जिन कारखानों की क्षमता 250 श्रमिकों से अधिक है वहां जलपान गृह की सुविधा होनी चाहिए।
→ कर्मचारी यदि 150 से अधिक हैं, तो उनकी सुविधा के लिए विश्राम कक्ष, आराम कक्ष व भोजनालय की स्थापना होनी चाहिए।
→ जहां कर्मचारी खड़े रहकर कार्य करते हैं, वहां कर्मचारियों के बैठने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

→ पुरुष तथा महिला कर्मचारियों के लिए अलग-अलग वस्त्र धोने की व्यवस्था होनी चाहिए। गीले वस्त्रों को सुखाने की भी व्यवस्था कारखाना मालिक की ओर से की जानी चाहिए।

O कारखाना अधिनियम 1948 के अनुसार कारखानों में 30 से अधिक महिला कर्मचारी होने पर उनके 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए क्रेच (शिशुघर) होने चाहिए। क्रेच की देख-रेख के लिए कुशल प्रशिक्षितमहिला होनी चाहिए।
→ महिला श्रमिकों से एक दिन में 9 घण्टे से ज्यादा कार्य नहीं लिया जा सकता । शाम सात बजे से सुबह पांच बजे तक महिला श्रमिक को कार्य पर नहीं लगाया जा सकता। एक सप्ताह में 48 घण्टों से ज्यादा कार्य नहीं करवाया जा सकता। सप्ताह में छः दिन काम के व एक दिन छुट्टी का होगा।
O 16 वर्ष से कम उम्र के किशोर, जिन्हें मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, उन्हें न्यायालय द्वारा बालक अधिनियम 1960 (1960 का 60) के अनुसार उपचार, प्रशिक्षण एवं पुनर्वास के अधिकार प्रदान किए गए हैं।

O समाज कल्याण विभाग द्वारा अनाथ तथा त्यागे हुए पांच वर्ष तक के बच्चों के लिए शिशु गृह की स्थापना की गई है। 6 से 16 वर्ष के बालक एवं किशोर तथा 6 वर्ष से 18 वर्ष तक की बालिका एवं किशोरी के लिए निराश्रित बालगृहों की स्थापना की गई है। दोनों प्रकार की योजनाओं द्वारा निम्न सुविधायुक्त अधिकार प्रदान किए गए हैं-
भोजन की उचित व्यवस्था का लाभ ।
वस्त्र प्राप्त करने की अधिकारिकता ।
जीवनोपयोगी शिक्षा प्राप्त करने का प्रावधान।
समाज कल्याण की उक्त योजनाओं का लाभ निम्न प्रकार के शिशु, बालक-बालिकाओं को प्रदान किया जाता है-
→जिनके माता-पिता को लम्बी आपराधिक जेल सजा दी गई हो।
→ पिता द्वारा माता को त्याग दिया गया हो और माता पालन व पोषण करने में असमर्थ हो बालक अनाथ हो या जिसके माता-पिता के सम्बन्ध में कोई जानकारी न हो कोढ़ की बीमारी के कारण माता-पिता द्वारा जिन बच्चों की देखभाल किया जाना सम्भव न हो

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